बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति
प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
अथवा
शोध समस्या के प्रतिपादन पर एक लेख लिखिये।
अथवा
अनुसन्धान समस्या के चयन में किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए? इसके परिभाषीकरण के लिये महत्वपूर्ण बिन्दु बताइए।
उत्तर -
(Selection of Research Problem)
अनुसन्धानकर्त्ता को अध्ययन के लिए समस्या यूँ ही नहीं चुन लेनी चाहिए उसे समस्या का चयन उसकी विशेषताओं के आधार पर करना चाहिए अन्यथा समस्या का अध्ययन आगे चलकर बाधित हो सकता है, श्रम और धन बेकार हो सकता है। समस्या का चयन करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिएं-
(1) समस्या समाधान योग्य होनी चाहिए (Problem should be solvable) - किसी भी अनुसन्धानकर्ता के लिए सर्वाधिक महत्व की बात यह है कि उसकी समस्या समाधान के योग्य है या नहीं। उसे ऐसी समस्या कभी भी नहीं चुननी चाहिए जिसका समाधान न किया जा सके। वैज्ञानिक अनुसन्धान के द्वारा परामनोविज्ञान की अधिकांश समस्याओं का आज भी अध्ययन नहीं है। उदाहरण के लिए यदि कोई अनुसन्धानकर्ता 'मरणोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई जैसा कोई विषय लेता है जो इस विषय का वैज्ञानिक अध्ययन अभी आज के युग में सम्भव नहीं है। अतः अनुसन्धान समस्या का चयन करते समय यह हर प्रकार से समझ लेना चाहिये कि वह चुनी हुई अध्ययन समस्या का समाधान कर पायेगा अथवा नहीं।
(2) अनुसन्धान समस्या और मात्रात्मक आँकड़े (Research problem and quantitative data) - अनुसन्धान समस्या ऐसी होनी चाहिये जिसका अध्ययन करते समय मात्रात्मक आँकड़े प्राप्त किये जा सकें। मात्रात्मक आँकड़ों का अभिप्राय यह है कि आँकड़े अंकों के रूप में प्राप्त हों। समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के अध्ययनों में बहुत-सी समस्याएँ ऐसी होती हैं जिनके अध्ययन से प्रारम्भ में आँकड़े शब्दों के रूप में प्राप्त होते हैं और बाद में इन शब्द रूपी आँकड़ों को अंकों में बदल दिया जाता है। इस प्रकार के आँकड़े भी मात्रात्मक आँकड़े हैं। अनुसन्धानकर्त्ता को समस्या का चयन करते समय इस विशेषता को भली प्रकार जाँच लेना चाहिये क्योंकि इस विशेषता के अभाव में समस्या का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हो पाता है। अतः अनुसन्धानकर्ता के लिये आवश्यक है कि समस्या का चयन करते समय ही वह निश्चय कर ले कि समस्या से सम्बन्धित मात्रात्मक आँकड़े किस प्रकार प्राप्त करेगा।
(3) समस्या मापन की सीमा में होनी चाहिये (Problem should be measurable limits) - अनुसन्धानकर्त्ता को समस्या का चुनाव करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिये कि समस्या से सम्बन्धित चरों का मापन किया जा सकता है या नहीं उसके मापन के लिये यन्त्र और साधन उपलब्ध है या नहीं। यह देखा गया है कि मापन के लिये यन्त्र और साधन जितने ही प्रामाणिक और शुद्ध होते हैं तो समस्या से सम्बन्धित चरों का मापन उतना ही शुद्ध होता है। अनुसन्धानकर्त्ता को ऐसी समस्या का चयन नहीं करना चाहिये जिसमें निहित चरों का मापन नहीं किया जा सके।
(4) अनुसन्धानकर्त्ता की रुचि (Research interest ) - अनुसन्धानकर्ता को किसी अनुसन्धान समस्या का चयन करते समय अपनी रुचि का भी ध्यान रखना चाहिये। समस्या के अध्ययन में जब तक उसकी रुचि नहीं होगी वह समस्या का अध्ययन अच्छी तरह से नहीं कर सकता। अनुसन्धान में समस्या के अध्ययन के लिए जितनी ही अधिक रुचि होती है उसमें उतना ही अधिक समस्या के सम्बन्ध में गहनतम अध्ययन करने की प्रवृत्ति होती है।
(5) अनुसन्धानकर्त्ता की अभिक्षमता (Researcher aptitude) - अनुसन्धानकर्ता को अनुसन्धान समस्या का चयन करते समय अपनी अभिक्षमता को भी ध्यान रखना चाहिये अर्थात् उसे यह जाँच लेना चाहिये कि उसमें समस्या का अध्ययन करने की योग्यता है अथवा नहीं यदि समस्या का अध्ययन करने की उसमें योग्यता ही नहीं है तो उसे ऐसी अनुसन्धान समस्या को छोड़कर ऐसी अध्ययन समस्या को चुनना चाहिये जो किसी अभिक्षमता के अनुरूप हो।
(6) अध्ययन समय (Study time) - अनुसन्धान समस्या के अध्ययन पर लगने वाले समय पर भी अनुसन्धानकर्ता को विचार करना चाहिये। कुछ समस्याओं के अध्ययन में अधिक समय लगता है। विकासात्मक मनोविज्ञान से सम्बन्धित कुछ समस्याओं में कभी-कभी 20 वर्ष का समय लग जाता है। अनुसन्धानकर्ता के पास अध्ययन के लिये जितना समय हो उसे उस समय के अन्दर ही अध्ययन पूरा हो जाने वाली समस्या चुननी चाहिये।
(7) व्यय (Expenses) - अनुसन्धानकर्त्ता को अनुसन्धान समस्या का चयन करते समय ही यह विचार कर लेना चाहिए कि समस्या के अध्ययन पर कितना व्यय होगा, अध्ययन का व्यय कहाँ से आयेगा और यदि व्यय नहीं मिलेगा तो क्या वह व्यय को स्वयं वहन कर लेगा अथवा नहीं। कई बार यह भी देखा गया है कि अनुसन्धान समस्याओं का अध्ययन व्यय के कारण बाधित हो जाता है।
(8) अनुसन्धान समस्या नैतिक मूल्यों के विपरीत नहीं होनी चाहिये (Research problem should not be against ethical values) - अनुसन्धानकर्त्ता को ऐसी समस्या कभी नहीं चुननी चाहिये जो नैतिक मूल्यों का ह्रास करने वाली हो। नैतिक मूल्यों का हनन करने वाली समस्याओं के अध्ययन में अनुसन्धानकर्ता को सहयोग मिलने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अध्ययन इकाइयाँ आँकड़ों के संग्रह के समय सहयोग नहीं करती हैं। जहाँ तक हो सके समस्या नैतिक मूल्यों के साथ-साथ धार्मिक मान्यताओं के विपरीत भी नहीं होनी चाहिये। समस्या के अध्ययन को जाति सूचक शब्दों से भी दूर रखना चाहिये।
(Statement of Problem Or Defining a Problem)
समस्या का परिभाषीकरण और समस्या का कथन एक ही बात है दोनों का उद्देश्य भी एक ही है। समस्या के परिभाषीकरण अथवा समस्या के कथन के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु निम्न प्रकार से हैं-
(1) अनुसन्धान समस्या का कथन प्रश्न के रूप में नहीं होना चाहिये (Research problem should not be stated in question form ) - वैज्ञानिक अनुसन्धानकर्त्ता को समस्या का कथन प्रश्न के रूप में कदापि करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के कथन से समस्या का कथन वैज्ञानिक दृष्टि से दोषपूर्ण माना जाता है। उदाहरण के लिये यदि कोई अनुसन्धानकर्ता यह अध्ययन करना चाहता है कि शैक्षिक उपलब्धि पर व्यक्तित्व कारकों का क्या प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में यदि वह अपनी समस्या का कथन प्रश्न के रूप में निम्न प्रकार से करता है- 'क्या शैक्षिक उपलब्धि पर व्यक्तित्व कारकों का प्रभाव पड़ता है।' अनुसन्धानकर्ता का इस प्रकार का समस्या कथन समस्या कथन के नियमों के विपरीत है उसे अपनी समस्या का कथन इस प्रकार करना चाहिये- "युवा छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पर व्यक्तित्व कारकों का प्रभाव। "
(2) अनुसन्धान समस्या का कथन शीर्षक के रूप में नहीं होना चाहिये (Research problem should not be stated in title form ) - वैज्ञानिक अनुसन्धानकर्ता को समस्या का कथन शीर्षक के रूप में कभी भी नहीं करना चाहिये क्योंकि इस प्रकार के कथन से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि उसे समस्या में किन चरों के सम्बन्ध का और किन लोगों पर अध्ययन करना है। उदाहरणार्थ यदि कोई अनुसन्धानकर्त्ता यह अध्ययन करना चाहता है कि शैक्षिक उपलब्धि पर व्यक्तित्व का क्या प्रभाव पड़ता है। यदि वह अपनी समस्या का कथन शीर्षक रूप में इस प्रकार करे- 'शैक्षिक उपलब्धि और व्यक्तित्व' अनुसन्धानकर्त्ता का समस्या कथन का यह तरीका वैज्ञानिक नहीं है उसे अपने अध्ययन को समस्या के रूप में निम्न प्रकार से कथन करना चाहिये - 'स्नातक के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पर व्यक्तित्व कारकों का प्रभाव।
(3) अनुसन्धान समस्या के कथन में निश्चितता होनी चाहिये (Research problem should be stated in definite form ) - अनुसन्धान समस्या के कथन में निश्चितता का गुण होना चाहिये। अनुसन्धान समस्या के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाये कि समस्या में किन लोगों का अध्ययन करना है किस प्रकार का अध्ययन करना है और किस चर या चरों के प्रभाव अध्ययन करना है। अनुसन्धान समस्या के कथन में निश्चितता किस प्रकार होनी चाहिये इसको इस उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है - 'Anxiety as a correlate of acadamic achievement among high school adolescents'। इस प्रकार के कथन में यह निश्चित है कि इन्टर की छात्राओं का अध्ययन करना है, कि शैक्षिक उपलब्धि पर चिन्ता के प्रभाव का अध्ययन करना है और यह भी निश्चित है कि चिन्ता का शैक्षिक उपलब्धि के एक सहचर (correlate) के रूप में अध्ययन करना है।
(4) समस्या का कथन 'यह दिखाने के लिये अध्ययन' के रूप में नहीं होना चाहिये (Problem should not be stated like, 'A study to show ' ) - वैज्ञानिक अनुसन्धानकर्त्ता को समस्या का कथन ' A study of show' के रूप में कदापि नहीं करना चाहिये। समस्या के कथन का यह ढंग आधुनिक युग में मान्य नहीं है। उदाहरण के लिये यदि कोई अनुसन्धानकर्ता अपनी समस्या का कथन इस प्रकार करे - ' A study to show relationship between acadamic achievement and anxiety' यह समस्या का कथन दोषपूर्ण है, उसे अपनी समस्या का कथन निम्न प्रकार से करना चाहिए 'Anxiety as a correlate of acadamic achievement among high school female students'.
(5) समस्या कथन में दो या दो से अधिक चरों के सम्बन्ध की अभिव्यक्ति होनी चाहिए (The statement of problem should express relationship between two or more variables) - समस्या का कथन इस प्रकार होना चाहिए कि समस्या में अध्ययन किए जाने वाले स्वतन्त्र और परतन्त्र चरों के सम्बन्ध का कथन होना चाहिए अर्थात् किस चर पर और किन चरों के प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है और दो चरों में किस प्रकार के सम्बन्ध का अध्ययन किया जा रहा है। उदाहरणार्थ यदि कोई अनुसन्धानकर्ता यह अध्ययन करना चाहता है कि छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पर चिन्ता और बुद्धि क्या एक-दूसरे पर आश्रित होकर प्रभावित करते हैं या चिन्ता और बुद्धि एक-दूसरे से स्वतन्त्र होकर शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करते हैं अथवा इन कारकों का छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार के अध्ययन के लिए समस्या का कथन निम्न प्रकार से होगा - " इन्टर के किशोर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि पर उनकी चिन्ता और बुद्धि का अन्तःक्रियात्मक प्रभाव।" यहाँ इस समस्या के कथन में IV. और D. V. क्या-क्या है? यह समस्या के कथन में स्पष्ट है। स्वतन्त्र चर (I.V.) और परतन्त्र चरों (D.V.) में किस प्रकार के सम्बन्धों का अध्ययन करना है, यह भी स्पष्ट है, अर्थात् अन्तःक्रियात्मक सम्बन्धों का अध्ययन करना है।
(6) समस्या का कथन ऐसा होना चाहिए कि समस्या की जाँच अनुभव सिद्ध दृष्टिकोण से की जा सके (Statement of problem should be such as to imply possibilities of testing from empirical point of view) - समस्या का कथन करते समय अनुसन्धानकर्त्ता को यह ध्यान में रखना चाहिए कि समस्य की जाँच केवल वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा ही सम्भव न हो, साथ-साथ अनुभवसिद्ध दृष्टिकोण से भी जाँच करने की पूरी-पूरी सम्भावना होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में निरीक्षणों के आधार पर तो जाँच सम्भव हो परन्तु तार्किकता की दृष्टि से समस्या की जाँच सम्भव न हो तो कहेंगे कि समस्या की जाँच अनुभवसिद्ध दृष्टिकोण से सम्भव नहीं है। उपरोक्त बिन्दुओं में वर्णित समस्याओं की जाँच अनुभवसिद्ध दृष्टिकोण से भी की जा सकती है।
करलिंगर ने अपनी पुस्तक में कुछ बिन्दुओं का वर्णन किया है उनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार-
(1) अनुसन्धान समस्या का कथन अति संकीर्ण नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कोई अनुसन्धानकर्त्ता "पढ़ने पर अक्षरों के आकार का प्रभाव" समस्या का अध्ययन करना चाहता है। समस्या के इस कथन में संकीर्णता झलकती है।
(2) समस्या का कथन अतिव्यापक नहीं होना चाहिए। इस बिन्दु की व्याख्या उपरोक्त बिन्दु-3 में अनुसन्धान समस्या के कथन में निश्चित होनी चाहिए।
(3) अनुसन्धान समस्या में अस्पष्ट सामान्यीकरण (Vague generalization) नहीं लिखा होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि किसी अनुसन्धानकर्त्ता की समस्या यह है कि- 'पाठ्यक्रम का सार समृद्ध करने वाला अनुभव होता है।' इस प्रकार का समस्या का कथन अस्पष्ट सामान्यीकरण से युक्त है, जो एक गम्भीर दोषपूर्ण कथन है। इस प्रकार के कथन से अनुसन्धानकर्त्ता से दूर रहना चाहिए।
(4) अनुसन्धान समस्या के कथन में आलंकारिक, भ्रान्तिपूर्ण और उत्तेजित करने वाले शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। चाहिए, निकृष्ट उत्तम जैसे शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
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- प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
- प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
- प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
- प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
- प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
- प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
- प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
- प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
- प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
- प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
- प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
- प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
- प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
- प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
- प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
- प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
- प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
- प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
- प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
- प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
- प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
- प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
- प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
- प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
- प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
- प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
- प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
- प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
- प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
- प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
- प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
- प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
- प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
- प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
- प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
- प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
- प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
- प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
- प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
- प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।